भवन में दिशा दोष और और उसके निवारण
भवन में दिशा दोष और और उसके निवारण

भवन में दिशा दोष और और उसके निवारण  

प्रमोद कुमार सिन्हा
व्यूस : 6461 | जून 2015

प्र.-भवन में दक्षिण दिशा दोष रहने पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उ.- दक्षिण दिशा सभी प्राणियों को जीवन शक्ति देता है और उत्साह और स्फूर्ति प्रदान करता है। दक्षिण दिषा से कालपुरुष के सीने के बाएं भाग, गुर्दे एवं बाएं फेफड़े का विचार किया जाता है। यदि घर के दक्षिण में कुआं, दरार, कचरा, कूड़ादान एवं पुराना कबाड़ हो तो हृदय रोग, जोडो़ं का दर्द, खून की कमी, पीलिया आदि की बीमारियां होती हैं। यदि दक्षिण मंे कुआं या जल हो तो अचानक दुर्घटना से मृत्यु होती है। दक्षिण द्वार नैर्ऋत्याभिमुख हो तो दीर्घ व्याधियां एवं अचानक मृत्यु होती है। साथ ही दिशा दोषपूर्ण होने पर स्त्रियों में गर्भपात, मासिक धर्म में अनियमितता, रक्त विकार, उच्च रक्तचाप, बवासीर, दुर्घटना, फोड़े-फुंसी, अस्थि मज्जा, अल्सर आदि से संबंधित बीमारियाँ होती हंै तथा नौकरी-व्यवसाय में नुकसान, समाज में अपयष, पितृ सुख मंे अवरोध, पिता के व्यसनी होने, सरकारी कामों में असफलता आदि की संभावना रहती है।

प्र.-भवन के दक्षिण दिशा दोष रहने पर क्या उपाय करना चाहिए?

उ.- दक्षिण के दिशा दोष रहने पर निम्न उपाय करना लाभप्रद होता है:

1. यदि दक्षिण दिशा बढ़ा हुआ हो तो उसे काटकर आयताकार या वर्गाकार बनाएं।

2. दिषा दोष के निवारणार्थ दक्षिण द्वार पर मंगल यंत्र लगाएं।

3. दक्षिणावर्ती संूड़वाले गणपति के चित्र अथवा मूर्ति द्वार के अंदर-बाहर लगाएं। 

4. दरवाजे पर वास्तु मंगलकारी तोरण लगाएं।

5. भैरव, हनुमान जी एवं गणेश जी की उपासना करें।

6. दक्षिणामुखी घर का भी जल उत्तर पूर्व दिशा से बाहर निकालें।

प्र.-भवन में ईशान दिशा में दोष रहने पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उ.- ईशान दिशा आध्यात्मिक, आत्मिक एवं शारीरिक विकास के साथ मानसिक प्रगति लिए बड़ा ही शुभ दिशा है। यदि ईशान दिशा में दोष हो तो पूजा पाठ के प्रति रुचि की कमी, ब्राह्मणों एवं बुजुर्गों के सम्मान में कमी, धन एवं कोष की कमी एवं संतान सुख में कमी बनी रहती है। साथ ही वसा जन्य रोग जैसे-लीवर, मधुमेह, तिल्ली आदि से संबंधित बीमारियां आदि होने की संभावना रहती है। यदि उत्तर-पूर्व में रसोई घर हो तो खांसी, अम्लता, मंदाग्नि, बदहजमी, पेट में गडबडी और आंतों के रोग आदि होते हैं।

प्र.-भवन के ईशान दिशा दोष रहने पर क्या उपाय करना चाहिए?

उ.- ईशान दिशा में दोष रहने पर निम्न उपाय करना लाभप्रद होता है:

1. यदि ईशान्य दिशा का उत्तरी या पूर्वी भाग कटा हो तो उस कटे हुए भाग पर दर्पण लगाएं। साथ ही कटे ईशान्य क्षेत्र के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए बुजुर्ग ब्राह्मण को बेसन के लड्डू खिलाएं।

2. इस दिशा में पानी का फव्वारा, तालाब या बोरिंग कराएं।

3. ईशान दिशा को पवित्र रखें तथा ईशान दिशा में नियाॅन बल्ब लगाएं।

4. ईशान्य क्षेत्र में भगवान शंकर की ऐसी तस्वीर जिसमें सिर पर चंद्रमा हों तथा जटाओं से गंगा जी निकल रही हांे, लगाएं।

5. भगवान विष्णु के समक्ष विष्णु सहस्त्रनाम् स्तोत्र का पाठ करें तथा धातु के श्रीयंत्र के समक्ष श्रीसूक्त का पाठ करें।

प्र.-भवन के वायव्य दिशा दोष रहने पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर- वायव्य दिशा समुचित मानसिक विकास के साथ पारिवारिक जीवन सुखमय एवं मातृ सुख देता है। यह दिशा देश-विदेश का भ्रमण कराता है। इस दिशा के दोष रहने पर जातक निर्धन, मूर्ख, उन्मादग्रस्त तथा कदम-कदम पर ठोकरें खाने वाला होता है। जातक को पेट मंे गैस, चर्म रोग, छाती में जलन, दिमाग के रोग और स्वभाव में क्रोध रहता है तथा जातक के षत्रु अधिक होंगे। लेकिन इसके दोष रहित होने पर उसके अनेक मित्र होंगे जो उसके लिए लाभदायक सिद्ध होंगे।

प्र.-वायव्य दिशा दोष रहने पर क्या उपाय करना चाहिए?

उ0- वायव्य दिशा में दोष रहने पर निम्न उपाय करना लाभप्रद होता है:

1. वायव्य दिशा का क्षेत्र यदि बढ़ा हुआ हो तो उसे आयताकार या वर्गाकार बनाएं। यदि यह भाग कटा हुआ हो तो पूर्णिमा के, चंद्रमा की तस्वीर लगाएं। साथ ही दोष निवारण हेतु घर मे चंद्र यंत्र लगाएं।

2. द्वार पर आगे-पीछे ष्वेत गणपति रजतयुक्त श्रीयंत्र के साथ लगाएं।

3. दीवारों पर क्रीम रंग करें।

4. माता का यथासंभव आदर-सत्कार करें एवं आशीर्वाद लें।

5. सोमवार का व्रत रखें।

6. स्फटिक शिवलिंग पर नित्य दूध चढ़ाएं।

प्र.-भवन के आग्नेय दिशा में दोष रहने पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उ.- आग्नेय दिशा परमात्मा की सृष्टि को आगे बढ़ाता है। अतः जीव मात्र की प्रजनन क्रिया और काम जीवन पर इस दिशा का अधिकार बताया गया है, जिसके फलस्वरूप यह क्रियात्मक क्षमता के द्वारा विकास क्रम में योगदान देता है। इसकी स्थिति से पत्नी, कामशक्ति, वैवाहिक सुख, सांसारिक एवं पारिवारिक सुख का विचार किया जाता है। इस दिशा में दोष रहने पर दाम्पत्य सुख में, मौजमस्ती एवं शयन सुख में कमी बनी रहती है। साथ ही नपुंसकता, मधुमेह, जननेंद्रिय, रति, मूत्राशय, तिल्ली, बहरापन, गूंगापन और छाती आदि से संबंधित बीमारियांे की संभावना रहती है।

प्र.-भवन के आग्नेय दिशा दोष रहने पर क्या उपाय करना चाहिए?

उ.- आग्नेय दिशा दोष रहने पर निम्न उपाय करना लाभप्रद होता है: 

1. घर के द्वार पर आगे-पीछे वास्तु दोष नाशक हरे रंग के गणपति को स्थान दें।

2. स्फटिक श्रीयंत्र के समक्ष श्री सूक्त का पाठ करें।

3. शुक्र यंत्र के समक्ष शुक्र के बीज मंत्र का जप करें।

प्र.-भवन के नैर्ऋत्य दोष दिशा में दोष रहने पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उ.- यह दिशा आयु की दिशा है, आकस्मात् घटना एवं दुर्घटनाओं की कारक दिशा है। यदि घर के नैर्ऋत्य में खाली जगह, गडढा, भूतल, जल की व्यवस्था या कांटेदार वृक्ष हों तो गृहस्वामी बीमार होता है, उसकी आयु क्षीण होती है, षत्रु पीड़ा पहंुचाते हैं तथा संपन्नता दूर रहती है। नैर्ऋत्य दिषा से पानी दक्षिण के परनालांे से बाहर निकलता हो तो स्त्रियों पर तथा पष्चिम के परनालों द्वारा पानी निकलता हो तो पुरुषों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

नैर्ऋत्य के दोष होने पर अकस्मात् दुर्घटनाएं, अग्निकांड एवं आत्महत्या जैसी घटनाएं होती रहती हैं। इसके अतिरिक्त परिवार के लोगों को त्वचा रोग, कुष्ठ रोग, छूत के रोग, पैरांे की बीमारियां, हाइड्रोसील एवं स्नायु से संबंधित बीमारियांे की संभावना रहती हैे। नैर्ऋत्य दिशा दोष रहने पर निम्न उपाय करना लाभप्रद होता है: 

1. नैर्ऋत्य दिशा बढ़ा हुआ हो तो इसे काटकर आयताकार या वर्गाकार बनाएं।

2. दिषा दोष निवारणार्थ पूजास्थल में राहु यंत्र स्थापित कर उसका पूजन करंे।

3. मुख्य द्वार पर भूरे या मिश्रित रंग वाले गणपति लगाएं।

4. राहु के बीज मंत्र का जप एवं राहुस्तोत्र का पाठ करें।

5. यदि नैर्ऋत्य दिशा में अधिक खुला क्षेत्र हो तो यहां ऊँचे - ऊँचे पेड़-पौधे लगाएं। साथ ही भवन के भीतर नैर्ऋत्य क्षेत्र में गमलों में भारी पेड़-पौधे लगाएं।

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