बिना सुरति राम नहीं मिलते
बिना सुरति राम नहीं मिलते

बिना सुरति राम नहीं मिलते  

ओशो
व्यूस : 5324 | मार्च 2010

tरा भी लोगों को गुमराही मालूम होती थी। जिन्होंने भी पाया है परमात्मा को, उनकी राह सभी को गुमराह मालूम होती है। स्वाभाविक यहां करोड़ों लोग धन के पीछे दौड़ रहे हैं। जब कोई एकाध व्यक्ति परम धन के पीछे दौड़ता है तो निश्चित उसकी राह गुमराह मालूम होती है, क्योंकि वह करोड़ों के विपरीत चलने लगता है। करोड़ों की संख्या बड़ी है। उनका बहुमत है। उनका बाहुल्य है। उनकी भीड़ है। राजपथ वही लोग हैं। जब भी कोई भगवान का भक्त होता है उसको पगडंडी पकड़नी पड़ती है; उसे रास्ते से उतर जाना पड़ता है। लोग कहते हैं - कहां चलें, गुमराह हुए ! लेकिन यही हिम्मतवर लोग कभी-कभी राजपथ को छोड़कर पगडंडियां पकड़ लेते हैं, अपनी राह खुद बनाते हैं। यही लोग, यही थोड़े-से लोग, सारी दुनिया को गौरव देते हैं।

एक दिन इनके ही कदम, इनके कदमों के निशान, परमात्मा के मंदिर की राह बन जाते हैं। बहुत लोग उन पर चलते हैं। मीरा ने हिम्मत की गुमराह कहे जाने की। याद रखना, अगर तुम्हें भी राह पकड़नी हो तो पहले गुमराह समझे जाने की हिम्मत रखनी ही होगी। वह जोखिम उठाना ही होगा। वैसा सदा हुआ; उससे अन्यथा नहीं हो सकता। लोग तुम्हें तभी तक ठीक समझते हैं, जब तक तुम उन्हीं -जैसे हो। जैसे ही तुमने जरा फर्क किया कि उन्होंने तुम्हें गलत समझा। लोग चाहते हैं कि तुम उनकी प्रतिलिपि रहो। लोग चाहते हैं कि तुम नियम में आबद्ध रहो। लोग चाहते हैं, तुम लकीर के फकीर रहो। लकीर जरा भी छोड़ी कि लोग बेचैन हो जाते हैं, उद्विग्न हो जाते हैं। लेकिन जिसे रस लग जाता है, वह लोगों की फिक्र छोड़ देता है। मेरो मन रामहि राम रटै रे। मीरा कहती है- मुझे अबकुछ सुनाई नहीं पड़ता कि लोग क्या कह रहे हैं, दुनिया में क्या हो रहा है। बाजार का शोरगुल अब मुझ तक नहीं पहुंचता।

लोगों के चित्त का धुआं मुझ तक नहीं आता। मेरो मन रामहि राम रटै रे ! यहां तो भीतर राम-ही-राम की धुन उठी है। यह धुन अनवरत है। यह सदा हो रही है। पहले तो तुम्हें शुरुआत करनी होती है, तो भूल-भूल जाते हो। कभी रट लेते हो, फिर भूल जाते हो, फिर याद आ जाती है, फिर रट लेते, फिर भूल जाते। वह पहला कदम है। फिर दूसरा कदम यह है- कम भूलेगा, ज्यादा याद रहेगा। कभी-कभी भूलेगा। अभी कभी-कभी याद आएगा। शुरू करोगे तो, ज्यादा भूलेगा, लंबे समय होंगे भूल जाने के, विस्मरण के। सुरति कभी-कभी आएगी। फिर धीरे-धीरे स्थिति बदलेगी, सुरति ज्यादा रहेगी, विस्मरण कभी-कभी होगा। और फिर तीसरी दशा आती है कि सुरति स्थिर हो जाती है। जैसे श्वास चलती है सुरति चलती है। जागो तो, सोओ तो, उठो तो, काम करो तो-भीतर अहर्निश एक नाद चलता रहता है; गूंज बनी रहती है; शराब ढलती रहती है; राम से मिलन होता रहता है।

बैठे रहो बाजार में दूकान पर, कुछ फर्क नहीं पड़ता, भीतर राम से मिलन होता रहता है। मेरो मन रामहि राम रटै रे। राम नाम जप लीजै प्राणी, कोटिक पाप कटै रे। मीरा कहती है- करोड़ों पाप कट जाएंगे, एक राम की स्मृति कर लो, उससे ही। यह बात थोड़ी समझने-जैसी है। इसका गलत अर्थ भी लोग ले लेते हैं। लोगों ने गलत अर्थ ही लिया है। लोग सोचते हैं- जब करोड़ों पाप राम के नाम लेने से कट जाएंगे तो फिर क्या करना? एक दिन राम का नाम ले लेंगे और कट जाएंगे करोड़ों पाप, फिर बार-बार क्या लेना? एक बार ही से कट जाना तो एक बार ले लेंगे आखीर में। या अगर ऐसा ही है तो रोज जाकर एक दफा ले लेंगे मंदिर में, दिन-भर के कट गए। ऐसे ही लोग गंगा चले जाते हैं, सोचते हैं- गंगा में नहा लेने से कट जाएंगे पाप।

रामकृष्ण से किसी ने पूछा, वह गंगा की यात्रा पर जा रहा था। रामकृष्ण से पूछा कि मैं गंगा जा रहा हूं। परमहंसदेव-इसी आशा में कि जन्म-जन्म के पाप कट जाएंगे, आप क्या कहते हैं? रामकृष्ण बड़े सरलचित्त आदमी थे। क्रांति उनके वचनों में नहीं थी; उनके वचन बड़े शांत थे। मगर फिर भी सत्य को कहना ही होगा, अगर कबीर के पास गया होता यह आदमी तो कबीर ने उठा लिया होता सोटा, इसका सिर खोल दिया होता- ‘कि क्या पागलपन की बात कर रहा है! पहले तो यह मूढ़ता है कि गंगा के पानी में नहाने से तेरे पाप कट जाएंगे; दूसरे अगर गंगा के पानी में नहाने से कटते हों पाप, तो तब भूलकर मत जाना! क्योंकि पाप तू करे और गंगा से कटवाए, यह अन्याय है। और अगर गंगा के कारण पाप कट गए, किए तूने और काटे गंगा ने, तो गौेरव क्या है? इसलिए कबीर मरते वक्त काशी छोड़कर मगहर चले गए। क्योंकि कहावत है कि मगहर में जो मरता है, मरकर गधा होता है। लोग तो काशी जाते हैं- मरते वक्त -- काशी-करवट - जब मरने के दिन करीब आने लगते हैं तो लोग काशी जाते हैं। इसलिए काशी में तुम पाओगे इस तरह के मरे-मराए मुर्दा लोग; वे प्रतीक्षा कर रहे हैं मरने की।

काशी में बैठे हैं, क्योंकि काशी में जो मरता है, वह मोक्ष जाता है। जब कबीर के मरने का वक्त आया, कबीर ने अपने शिष्यों से कहा कि बांधो विस्तर, चलो मगहर। उन्होंने कहा - आपका होश ठीक है? आप कह क्या रहे हैं? कबीर ने कहा कि काशी में तो मरूंगा ही नहीं; क्योंकि अगर काशी में गया, और मोक्ष गया, तो फिर राम का निहोरा! यहां नहीं मरूंगा; मगहर में मरकर मोक्ष जाऊंगा तो ही कुछ बात हुई। काशी में तो कई मुर्दे, कहते हैं, मर-मरकर जा रहे हैं मोक्ष। यहां से मैं नहीं जाने वाला, यह घाट बहुत गंदा हो गया। यहां से जो गए हैं उनको देखता हूं तो मेरी मोक्ष जाने की इच्छा भी नहीं होती-कि इन्हीं से मिलना वहां हो जाएगा; इन्हीं से काशी में सिर खपाया! किसी तरह मरने की सुविधा बन रही है अब, तो फिर यही काशी के प्राणियों से मिलना हो जाएगा।

नहीं, इस तरफ से जाना ही नहीं। ये जहां जाते हैं, वहां जाना ही नहीं। मैं तो मगहर में मरूंगा। और मगहर में ही मरे। तो कबीर से अगर पूछा होता किसी ने, वे डंडा उठा लेते। कबीर तो काशी में भी रहकर गंगा नहाने नहीं गए। क्या जाना गंगा नहाने ! ऊपर की गंगा नहा रहे थे; जमीन की गंगाओं से क्या होगा ! स्वर्ग की गंगा में नहा रहे थे; मगर वे क्रांतिकारी दृष्टि के आदमी थे। रामकृष्ण बड़े शांत आदमी थे। मगर शांत भी झूठ थोड़े ही बोलेगा ! शांत अपने ढंग से बोलेगा, यह बात जरूर सच है। क्रांत अपने ढंग से बोलेगा, शांत अपने ढंग से बोलेगा; मगर बात तो सच ही बोलनी होगी।

रामकृष्ण ने कहा- जाते हो, भले जाओ, एक डुबकी मेरे लिए भी लगा लेना। लेकिन तुमसे एक बात तो बता दूं, एक बात की सावधानी रखना। डुबकी लगाओ तो फिर निकलना मत ! उसने कहा कि अब मारे गए ! मर ही जाएंगे, अगर डुबकी लगाए, निकले नहीं ! रामकृष्ण ने कहा- निकले तो फिर क्या फायदा? क्योंकि मैंने यह सुना है कि काशी में जब नहाओगे गंगा में, तो पाप गंगा ले लेगी जब तुम डुबकी मारोगे ! मगर वे पाप भी इतने होशियार हो गए हैं कि वहां झाड़ जो लगे हैं किनारे उन पर चढ़-चढ़कर बैठ जाते हैं। वे कहते हैं- बेटे, अब निकलो ! कभी तो निकलोगे। बेटा जी निकले, वे दमककर फिर सवार ही होगा।

रामकृष्ण ने अपने ढंग से बात कह दी- अब तुम समझ लो। न तो गंगा के नहाने से कोई पाप धुल सकते हैं, और न राम का एकाध दफा नाम लेने से धुल सकते हैं। लेकिन राम अगर तुम्हारी सुरति बन जाए तो जरूर। बहने लगे राम की धारा तुम्हारे भीतर। चेष्टा से भी मुक्त हो जाए वह धारा; तुम्हें चेष्टा भी न करनी पड़े। अनायास, बिना प्रयास, सतत; जैसे हृदय धड़क रहा है, ऐसा राम धड़के। उसकी याद बनी ही रहे, तो निश्चित। वह जो बहुत दिन के खाते-बही में तुम्हारा लिखा है सब, वह एक दफे नाम लिया तो सब मिट जाता है। मगर नाम लेने का मतलब ठीक-ठीक समझ लेना- यह हो भाव से। यह हो अंतरतम से। यह हो प्राणपण से यह हो रोएं-रोएं से। यह ऐसा न हो कि ऊपर-ऊपर बैठे हैं, हजार बातें भीतर चल रही हैं और राम-राम भी कह लिया। देखते हैं, कुछ लोग बैठे रहते हैं, दुकान पर राम-राम जप रहे हैं; और कुत्ता आ गया।

उसको भी भगा दिया; वह लड़का तिजोरी में से पैसा तो नहीं निकाल रहा, उस पर भी आंख लगाए हुए हैं। पत्नी भीतर किसी से बात कर रही है, वह भी सुन रहे हैं; भिखारी आ गया, उसको हाथ बता रहे हैं कि आगे बढ़! यह सब चल रहा है, राम-राम भी जप रहे हैं ! इतनी कुशलता से जपोगे तो कुछ भी न होगा। इतनी होशियारी से नहीं। उसकी मस्ती होनी चाहिए। उसकी मस्ती में डूबे तो डूबे। राम नाम ऐसा होना चाहिए जैसे भीतर शराब ढलती रहे।



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