भगवान शंकर को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं। भांग धतूरा एवं बिल्व पत्र से प्रसन्न होने वाले केवल शिव ही हैं। शिवरात्रि के अवसर पर बिल्वपत्रों से विशेष रूप से शिव की पूजा की जाती है। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, किंतु कुछ ऐसे बिल्व पत्र भी होते हैं जो दुर्लभ किंतु चमत्कारिक और अद्भुत होते हैं। इस आलेख में ऐसे ही दुर्लभ बिल्व पत्रों की विस्तृत जानकारी दी जा रही है....
बिल्व पत्र का भगवान शंकर के पूजन में विशेष महत्व है जिसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। बिल्वाष्टक और शिव पुराण में इसका विशद उल्लेख है। अन्य कई ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर एवं पार्वती को बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है। श्रीमद् देवी भागवत में स्पष्ट वर्णन है कि जो व्यक्ति मां भगवती को बिल्व पत्र अर्पित करता है वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं होता।
उसे हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है और कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और वह भगवान भोले नाथ का प्रिय भक्त हो जाता है। उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हंै और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। बिल्व पत्र मुख्यतः पांच प्रकार के होते हैं - अखंड बिल्व पत्र, तीन पत्तियों के बिल्व पत्र, छः से 21 पत्तियों तक के बिल्व पत्र और श्वेत बिल्व पत्र। उपर्युक्त बिल्व पत्रों का अपना-अपना आध्यात्मिक महत्व है। यहां उनका संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत है।
अखंड बिल्व पत्र: इसका विवरण बिल्वाष्टक में इस प्रकार है- ‘‘अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वरे सिद्धर्थ लक्ष्मी’’। यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है। एकमुखी रुद्राक्ष के समान ही इसका अपना विशेष महत्व है। यह वास्तुदोष का निवारण भी करता है। इसे गल्ले में रखकर नित्य पूजन करने से व्यापार में चैमुखी विकास होता है।
तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र: इस बिल्व पत्र के महत्व का वर्णन भी बिल्वाष्टक में आया है जो इस प्रकार है- ‘‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् त्रिजन्म पाप सहारं एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम’’ यह तीन गण्ु ाा ंे स े यक्ु त हाने े क े कारण भगवान भूत भावन त्रिकालेश्वर को प्रिय है। इसके साथ यदि एक फूल धतूरे का चढ़ा दिया जाए, तो फलों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। इस तरह बिल्व पत्र अर्पित करने से भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। रीतिकालीन कवि श्री पद्माकर जी ने इसका वर्णन वइ इस प्रकार किया है- ‘‘देखि त्रिपुरारी की उदारता अपार कहां पायो तो फल चार एक फूल दीनो धतूरा को’’ भगवान आशुतोष त्रिपुरारी भंडारी सबका भंडार भर देते हैं। आप भी फूल चढ़ाकर इसका चमत्कार स्वयं देख सकते हैं और सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र में अखंड बिल्व पत्र भी प्राप्त हो जाते हैं। कभी-कभी एक ही वृक्ष पर चार, पांच, छह पत्तियों वाले बिल्व पत्र भी पाए जाते हैं। परंतु ये बहुत दुर्लभ हैं।
छह से लेकर 21 पत्तियों वाले बिल्व पत्र: ये मुख्यतः नेपाल में पाए जाते हैं।ं किंतु भारत में भी कहीं-कहीं मिलते हैं। जिस तरह रुद्राक्ष कई मुखों वाले होते हैं उसी तरह बिल्व पत्र भी कई पत्तियों वाले होते हैं। श्वेत बिल्व पत्र: जिस तरह श्वेत सांप, श्वेत टांक, श्वेत आंख, श्वेत दूर्वा आदि होते हैं उसी तरह श्वेत बिल्वपत्र भी होता है।
यह प्रकृति की अनमोल देन है। इस बिल्व पत्र के पूरे पेड़ पर श्वेत पत्ते पाए जाते हैं। इसमें हरी पत्तियां नहीं होतीं। इन्हें भगवान शंकर को अर्पित करने का विशेष महत्व है। वनस्पति में बेल का अत्यधिक महत्व है। यह मूलतः शक्ति का प्रतीक माना गया है। किसी-किसी पेड़ पर पांच से साढ़े सात किलो वजन वाले चिकित्सा विज्ञान में बेल का विशेष महत्व है।
आजकल कई व्यक्ति इसकी खेती करने लगे हैं। इसके फल से शरबत, अचार और मुरब्बा आदि बनाए जाते हैं। यह हृदय रोगियों और उदर विकार से ग्रस्त लोगों के लिए रामबाण औषधि है।
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