बालारिष्ट एवं भूतप्रेत बाधा का पारस्परिक संबंध रश्मि चैधरी ज्योतिष में बालारिष्ट संबंधी कुछ योगों का वर्णन मिलता है। उसी प्रकार कुंडली में भूत प्रेत बाधा से संबंधित योगों का समावेश भी है जिनमें आश्चर्यजनक रूप से समानता है। वस्तुतः ये दोनों प्रकार की बाधाओं के पारस्परिक संबंध को ही दर्शाता है। आइये जानें, इस बारे में विस्तार से। ज्योतिष में स्वास्थ्य एवं आयु का विचार करने के लिए मुख्यतः लग्न, षष्ठ, अष्टम तथा द्वादश भाव को देखा जाता है। लग्न व्यक्ति का व्यक्तित्व, शरीर एवं स्वास्थ्य है। षष्ठ भाव रोग का कारक होने के कारण स्वास्थ्य से संबंधित है तथा अष्टम भाव को मुख्यतः आयु भाव माना जाता है। इसी प्रकार (भावात् भावम्) के अनुसार तृतीय भाव अष्टम (आयु भाव) से अष्टम होने के कारण आयु भाव माना जाता है। द्वितीय तथा सप्तम भाव मारक भाव होने के कारण जातक की आयु से प्रत्यक्ष रूप से पूर्ण संबंध रखते हैं। कतिपय बालारिष्ट योग: कुंडली में बनने वाले कुछ बालारिष्ट योग इस प्रकार हैं- सूर्य अथवा चंद्र यदि तृतीय भाव में पापी ग्रहों के साथ हैं तो बच्चा बीमार रहेगा अथवा कुछ समय पश्चात् उसकी मृत्यु हो जाती है। यदि चंद्र अष्टम भाव के स्वामी के साथ कंेद्रस्थ है तथा अष्टम भाव में भी पापी ग्रह हैं तो शीघ्र मृत्यु होती है। यदि चंद्र से सप्तम भाव में मंगल एवं शनि हैं तथा राहु लग्नस्थ है तो जन्म के कुछ दिनों के अंदर ही मृत्यु हो जाती है। यदि लग्न कुंडली के 2, 4, 8, 12 भावों में पापी ग्रह हैं तो शिशु की अल्पायु होती है। यदि सभी ग्रह निर्बल हैं तथा 3, 6, 9, 12 भावों में स्थित हैं तो बालारिष्ट योग बनता है। यदि लग्नेश नीच राशिगत अष्टम भाव में है अथवा अस्त होकर अष्टम भाव में स्थित हैं तो भी जीवन संशयात्मक स्थिति में रहता है। यदि लग्न से कई पापी ग्रहों का संबंध बनता हो अथवा लग्नेश, चंद्र लग्नेश तथा नवमांश लग्न सभी पीड़ित अथवा पाप प्रभाव में हैं तो जीवन काल कुछ दिनों का ही होता है। लग्नेश यदि सप्तम भाव में राहु के साथ स्थित है, तो भी यह आयु के लिए शुभ संकेत नहीं है। यदि पापी ग्रह (राहु-केतु) अष्टम भाव में हो, जबकि लग्नेश केंद्र में पापी ग्रहों के साथ हो तथा उन पर कोई भी शुभ प्रभाव न हो, तो बालारिष्ट योग बनता है तथा अधिकतम आयु सात वर्ष ही होती है। इस प्रकार कुंडली में बनने वाले कुछ भूत-प्रेत बाधा योग ये हैं: यदि कुंडली में चंद्रमा अथवा लग्न, लग्नेश पर राहु-केतु का प्रभाव है तो उस जातक पर ऊपरी हवा जादू-टोने इत्यादि का असर अति शीघ्र होता है। यदि कुंडली के प्रथम भाव में चंद्रमा के साथ राहु अथवा केतु है और पंचम एवं नवम् भाव पर पाप प्रभाव है अथवा चंद्रमा अधिष्ठित राशि का स्वामी भी राहु-केतु के साथ स्थित है, तो ऐसा जातक भूत-बाधा का शिकार हो सकता है। पंचम भाव को ज्योतिष में पूर्व जन्म, आत्माओं से संपर्क, पूर्व जन्म के शुभ-अशुभ कर्म तथा नवम भाव भाग्य भाव होने के साथ-साथ इस जन्म में हमारे पूर्व जन्म के कर्म फलों के भोग को दर्शाता है। अतः स्पष्ट है कि इन भावों पर पाप प्रभाव जातक के भाग्य व स्वास्थ्य के साथ उसके मानसिक एवं बौद्धिक विकास को प्रभावित करेगा। कुंडली में सप्तम भाव में अथवा अष्टम भाव में क्रूर ग्रह राहु-केतु, मंगल, शनि पीड़ित अवस्था में हैं तो ऐसा जातक भूत-प्रेत जादू-टोने तथा ऊपरी हवा आदि जैसी परेशानियों से अति शीघ्र प्रभावित होता है।