अग्नि तत्व सिंह राशि षष्ठ भाव में सूर्यः सिंह राशि षष्ठ भाव में सूर्य वैसा ही फल देता है जैसा षष्ठ भाव मेष राशि में देता है। सिंह राशि में सूर्य जातक को इतना अधिक आगे नहीं बढ़ने देता। परंतु जातक को सम्मान और प्रशंसा अधिक मिलती है। अपने आदेश से दूसरों से कार्य करवाता है। शुद्धता अधिक नहीं होती। यदि सूर्य का संबंध पाप ग्रहों से हो तो परेशानी होती है। मामा परिवार के लिए शुभ होता है। घूमना स्थानांतरण अधिक नहीं होता। सूर्य यदि दुर्बल, नीच, शत्रु नवांश में हो तो हृदय में तकलीफ होती है। गुरु का संबंध हो तो जातक अपने कर्म स्थान में आगे बढ़ता है। शुक्र शनि का संबंध सूर्य के साथ हो तो स्थाई रोग होता है। बुध का संबंध हो स्त्री के लिए अति अशुभ हो जाता है। मंगल का संबंध होने पर कर्म क्षेत्र में जातक जितनी आशा करता है उतना फल नहीं मिलता। राहु का संबंध होने पर जातक वाद-विवाद में उलझ जाता है। नीचे एक कुंडली का विवेचन किया जा रहा है। इस जातक की कुंडली में छठे भाव का स्वामी सूर्य अपनी मूल त्रिकोण राशि में पाप ग्रह तो है ही, अग्नि तत्व राशि में बैठा है साथ ही द्वादशेश शनि भी बैठा है जो कि अकारक है और तृतीयेश अष्टमेश शुक्र अकारक ग्रह भी छठे भाव में बैठे हैं यहां पर छठे भाव को विपरीत राजयोग मिल रहा है क्योंकि षष्ठ भाव में अष्टमेश, षष्ठेश और द्वादशेश बैठे हैं और गुरु की दृष्टि ने इन्हें और अधिक बलवान किया है। जब पाप गह दुःस्थान में राजयोग देते हैं तब कम परिश्रम करने पर अधिक लाभ मिलता है जातक को जन्म के समय राहु की महादशा 06.11.1957 तक मिली। गुरु की दशा 06.11.1993 तक रही। जब शनि की महादशा आई तो जातक को विपरीत राजयोग का लाभ मिला जातक विदेश में दलाल (जमीन जायदाद की दलाली) का कार्य करता है चतुर्थ भाव का स्वामी बुध सतम केंद्र में बलवान होकर उच्च राशि में स्थित है और पाप ग्रह के मध्य पाप कŸारी रोग में पीड़ित है