प्राचीनतम नगरी श्री अयोध्या श्री अयोध्ेध्ेध्या सप्त पुुिुिरियों ंे ं में ंे ं प्रथ््रथ््रथम है।ै।ै। श्री अयोध्ेध्ेध्या जी की महिमा वर्णर्नर्नन नहीं की जा सकती। बाल्मीकि रामायण के अनुसुसुसार मनु ने सर्वर्पर्पप्रथ््रथ््रथम इस पुरुरुरी को बसाया था। मनुनुनुना मानवेंदंेदंद्रे्रण्े्रण्ेण सा पुरुरुरी निर्मिर्तर्तता स्वयम्।्।। स्कंदंदंद परुरु ाण क े अनसुसु ार यह सदुदु शर्नर्न चक्र पर बसी ह।ै।ै।ै भतुतुतु शुिुिुिद्ध तत्व क े अनसुसुसु ार यह श्री रामचदंदं ्र क े धनष्ुष्ु ााग ्र पर स्थित ह-ै-ै श्री रामधनष्ुष्ु ाागस््रस््रस््र था अयाध्ेध्ेध्े या सा महापरुरुरु ी।। अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के भी पूर्ववत्र्ती सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रही है। इक्ष्वाकु से श्री रघुनाथ जी तक सभी चक्रवर्ती राजाओं ने अयोध्या के राजसिंहासन को विभूषित किया है। त्रेता युग में ही भगवान के परम धाम जाने के बाद अयोध्या उजड़ गयी। श्री राम के पुत्र कुश ने इसे फिर बसाया। वर्तमान अयोध्या का जो स्वरूप है, वह महाराज विक्रमादित्य द्वारा बसाया हुआ है। महाराज विक्रमादित्य ने ही योगसिद्ध संतों की कृपा से इस अवध भूमि का ज्ञान प्राप्त किया। उन संतों के निर्देश से ही महाराज ने यहां मंदिर, सरोवर, कूप आदि का निर्माण कराया। श्री अयोध्या जी का माहात्म्य गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के अनुसार स्पष्ट है ःजहां समस्त अवधवासियों के साथ भगवान साकेत लोक में प्रविष्ट हुए थे, वह पुण्यसलिला सरयू में स्थित गोप्ततार तीर्थ है। वहां जो स्नान करता है, वह निश्चय ही योगी दुर्लभ श्री राम धाम को प्राप्त होता है। सरयू में जहां भगवान श्री कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी ने स्नान किया था, वहां रुक्मिणी कुंड है। उसके ईशान कोण में क्षीरोदक कुंड है, जहां महाराज दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था। अयोध्या सूर्यवंशी नरेशों की प्राचीनतम राजधानी है। अतः जैनों के प्रथम तीर्थंकर अभिनंदननाथ, पांचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ और चैदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ का जन्म भी यहीं हुआ था। अयोध्या के आसपास के तीर्थों में सोनखर, गुप्तार घाट, जनौरा, नंदि ग्राम प्रमुख हैं। प्रमुख घाट: अयोध्या जी में सरयू के किनारे कई सुंदर पक्के घाट बने हैं। ऋणमोचन घाट, सहस्र घाट, लक्ष्मण घाट, स्वर्ग द्वार, गंगा महल, शिवाला घाट, अहल्याबाई घाट, रूपकला घाट, नमा घाट, जानकी घाट, राम घाट प्रमुख हैं। इन्हीं घाटों पर तीर्थ यात्री सरयू स्नान भी करते हैं। अवध सरिस प्रिय मोहि न सोऊ। स्वर्ग द्वार: लक्ष्मण घाट के पास ही श्री नागेश्वरनाथ महादेव मंदिर है। यह मूर्ति कुश द्वारा स्थापित की हुई है। इसी मंदिर को पा कर महाराज विक्रमादित्य ने अयोध्या का जीर्णोद्धार कराया था। नागेश्वरनाथ के पास ही एक गली में श्री राम जी का मंदिर है। एक ही काले पत्थर में श्री रामपंचायतन की मूर्तियां हैं। स्वर्ग द्वार घाट पर ही यात्री पिंड दान करते हैं। हनुमानगढ़ी: यह अयोध्या जी का सिद्ध स्थान है। मान्यता है कि श्री हनुमान जी अयोध्या में यहीं वास करते हैं। यह स्थान मध्य नगर में ही है। 60 सीढ़ियां चढ़ने पर ऊपर श्री हनुमान जी का मंदिर है। इस मंदिर में श्री हनुमान जी की बैठी हुई प्रतिमा है। मंदिर में भीड़ रहती है। श्री हनुमानचालीसा का पाठ प्रायः चलता रहता है। मंदिर में साधु-संतों का वास भी रहता है। कनक भवन: कनक भवन अयोध्या के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह भवन ओड़छा नरेश द्वारा बनवाया हुआ है। इस विशाल तथा भव्य मंदिर को सीता जी का महल कहते हैं। इस भवन में सिंहासन पर जो बड़ी मूर्तियां हैं, उनके आगे श्री सीताराम जी की छोटी मूर्तियां हैं, जो प्राचीन हैं। श्री राम जन्मभूमि: कनक भवन के आगे ही श्री राम जन्मभूमि है, जो विश्वविख्यात है। यहां के प्राचीन मंदिर को बाबर ने तुड़वा कर मस्जिद बना दिया था। लेकिन वहां फिर भी श्री राम की मूर्ति स्थित है। यहां असंख्य तीर्थ यात्रियों की भीड़ बनी ही रहती है। श्री राम जन्मभूमि मंदिर के पास ही कई मंदिर हैं, जिनमें सीता रसोई, कोप भवन, आनंद भवन, रंग महल, साक्षी गोपाल प्रमुख हैं। दतून कुंड: मणि पर्वत के पास ही एक दतून कुंड भी है। मान्यता है कि श्री राम जी यहां पर दातुन करते थे। कुछ लोगों की मान्यता है कि जब गौतम बुद्ध अयोध्या में रहते थे, तब उन्होंने एक दिन यहां अपनी दातुन गाड़ दी थी, जो 7 फुट ऊंचा वृक्ष बन गया। वह वृक्ष तो अब नहीं है; केवल उसका स्मारक है। आवश्यक जानकारियां: श्री अयोध्या पुरी उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से 120 किलोमीटर की दूरी पर है। यह नगर सरयू (घाघरा) के दक्षिण तट पर बसा है। उत्तर रेलवे पर अयोध्या स्टेशन है। मुगलसराय, बनारस, लखनऊ से यहां सीधी गाड़ियां आती हैं। अयोध्या में तीर्थ यात्रियों के ठहरने के अनेक स्थान हैं। नगर में अनेक धर्मशालाएं हैं। कुछ प्रमुख आश्रम भी हैं, जहां लोग ठहरते हैं।