किन स्थितियों में विवाह को टालें? पं. श्रीकृष्ण शर्मा वर या वधू की शिक्षा योग्यता, रोजगार अनुभव आदि का पता उनके बायोडाटा से लगाया जा सकता है, लेकिन उनकी सुख-समृद्धि, वैवाहिक जीवन एवं आने वाले दिनों में उनके आपसी तालमेल की जानकारी प्राप्त करने का एक मात्र साधन उनकी जन्मपत्रिका ही है। दोनों का आपसी संबंध कैसा रहेगा, संतान कैसी होगी, भविष्य में रोजगार की स्थिति कैसी रहेगी, परिवार के अन्य सदस्यों से संबंध कैसे रहेंगे, स्वास्थ्य और आयु की स्थिति क्या है, ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर जन्मपत्री के माध्यम से पाए जा सकते हैं। एक शोध के अनुसार भारत में होने वाले विवाह की सफलता का प्रतिशत अन्य देशों की तुलना में अधिक है। इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि भारत में विवाह के मुर्हूत आकाशीय ग्रहों की शुद्धि पर आधारित होते हैं। विवाह के लिए शुक्र और बृहस्पति दो ग्रह सबसे सौम्य एवं सर्वोत्तम माने गए हैं। जब ये अनुकूल हों तभी विवाह करना उचित माना गया है। जब ये ग्रह सूर्य के नजदीक जाकर अस्त हो जाते हैं तो विवाह नहीं किए जाते। विवाह यदि शुभ योग में हो तो वैवाहिक जीवन सुखी होता है। इसके विपरीत यदि विवाह के संदर्भ में निम्न योग हों तो विवाह नहीं करना चाहिए, अन्यथा शुभ फल प्राप्त होने की संभावना कम हो जाती है। वर और कन्या का गोत्र एक ही हो। दोनों में से कोई मंगल दोष से पीड़ित हो और ऐसे में मंगल दोष का परिहार भी न हो रहा हो। कुंडली मिलान में 18 से कम गुण मिल रहे हांे। दोनों का जन्म नक्षत्र, जन्म चंद्र मास और जन्म तिथि एक ही हों। जेष्ठ पुत्र, ज्येष्ठ कन्या, तथा ज्येष्ठ मास - इस प्रकार तीन ज्येष्ठों के योग में विवाह कदापि नहीं करना चाहिए। Û दो सहोदर भाइयों में एक के विवाह होने के बाद 6 सौर मास तक दूसरे का विवाह नहीं करना चाहिए। जब बृहस्पति तथा शुक्र अस्त हों अथवा बाल्य या वृद्धत्व दोष से पीड़ित हांे तो विवाह नहीं करें। जब मल मास चल रहा हो या देव शयन हो या स्वयंसिद्ध अबूझ मुहूर्त भी न हो तो विवाह न करें। जब सूर्य अपनी नीच राशि तुला में विचरण कर रहा हो तो विवाह न करें। होलाष्टक में विवाह वर्जित है। जन्मपत्री मिलान में योनि दोष हो, गणदोष (मनुष्य-राक्षस), हो या भकूट (षडाष्टक) हो अर्थात दोनों की राशियां आपस में छठी अथवा आठवीं पड़ती हों तो विवाह नहीं करें। वर-वधू की राशियां आपस में नौवीं या पांचवीं अथवा दूसरी या बारहवीं हों तो भी विवाह न करें। दोनों की कुंडलियों मंे नाड़ी दोष हो अर्थात् दोनों के राशि-नक्षत्र और चरण एक ही हों तो विवाह नहीं करें। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में विवाह नहीें करें। सीताजी का विवाह भरणी नक्षत्र में हुआ था। फलतः उन्हें वैवाहिक जीवन में अनेक कष्ट झेलने पडे़, इसलिए इस नक्षत्र में विवाह नहीं करना चाहिए। अभिजित् नक्षत्र में भगवान राम का जन्म हुआ था। शुभ कार्यों के लिए यह सर्वोत्तम नक्षत्र है, लेकिन विवाह के लिए यह नक्षत्र ठीक नहीं। इसी नक्षत्र में दमयंती ने विवाह किया था। फलतः उसके पति नल उसे भूल गए। यदि बृहस्पति सिंह राशि में हो तो विवाह नहीं करें। तिथि के आदि और अंत में भी विवाह नहीं करें। शास्त्रों के अनुसार ऐसी अवधि में विवाह करने पर पति की मृत्यु की संभावना भी रहती है। नक्षत्र और योग के आदि और अंत में भी विवाह नहीं करें। दो सगी बहनों का, दो सगे भाइयों का या भाई-बहनों का विवाह एक ही समय नहीं करना चाहिए।