उन्माद एवं मनोरोग ज्योतिष की नजर में
उन्माद एवं मनोरोग ज्योतिष की नजर में

उन्माद एवं मनोरोग ज्योतिष की नजर में  

व्यूस : 12984 | जून 2008
उन्माद एवं मनोरोग ज्योतिष की नजर में जी. बी. रावत उन्माद एक मानसिक रोग है। प्रश्न मार्ग, जातक तत्व इत्यादि ग्रंथों में इसका विस्तृत उल्लेख मिलता है। हर्ष, शोक, विषाद, डर आदि की अति होने पर अथवा महत्वाकांक्षा या किसी अन्य अभिलाषा की पूर्ति न होने पर व्यक्ति के उन्मादग्रस्त हो जाने का खतरा रहता है और जब वह इस मानसिक रोग से ग्रस्त हो जाता है तो वह पागलों का सा व्यवहार करने लगता है। अत्यधिक और अपवित्र भोजन, डर, वैराग, अकारण क्रोध, अभिचार, गुरु निंदा, देवनिंदा आदि उन्माद के कारण हैं। इनके अतिरिक्त वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ जाने पर भी व्यक्ति उन्मादग्रस्त हो जाता है। उन्माद पांच प्रकार का होता है - 1. वातजन्य 2. पित्तजन्य 3. कफजन्य 4. सन्निपात जन्य और 5. आगन्तुक उन्माद। उन्माद के लक्षण वातजन्य: वात के असंतुलित होने के फलस्वरूप जो व्यक्ति उन्मादग्रस्त होता है वह बिना कारण हंसता, चीखता चिल्लाता, नाचता गाता और बड़बड़ाता है। किंतु शारीरिक कमजोरी के बावजूद भी वह बलशाली प्रतीत होता है। पित्तजन्य: इस अवस्था में रोगी का शरीर पीला और गर्म रहता है। वह नींद में बड़बड़ाता है, उसके मुंह से लार टपकती रहती है और उल्टियां आती रहती हैं। वह कम बोलता है किंतु भोजन बहुत करता है। उसके नाखूनों एवं आंखों की पुतलियों का रंग सफेद होता है। कफजन्य: कफजन्य उन्माद से ग्रस्त व्यक्ति को क्रोध बहुत आता है, वह बिना किसी कारण के अक्सर अतिशय द्रवित भी होता रहता है। वह बार बार ठंडा पेय पीना चाहता है और अकारण लोगों से झगड़ा करता और चीखता रहता है। उसमें व्याकुलता साफ दिखाई देती है। सन्निपात जन्य: सन्निपातजन्य उन्माद से ग्रस्त व्यक्ति अर्धबेहोशी की अवस्था में रहता है। उसमें ऊपर वर्णित लक्षण भी पाए जाते हैं। आगंतुक उन्माद: यह उन्माद देव एवं राक्षस ग्रहों के कोप के फलस्वरूप होता है। उन्माद होने के योग लग्नस्थ या सप्तमस्थ गुरु जातक को विक्षिप्त बनाता है। शनि लग्नस्थ, गुरु सप्तमस्थ अथवा मंगल नवमस्थ हो तो जातक उन्मादग्रस्त होता है। लग्न में शनि बारहवें भाव में, सूर्य नवम अथवा पंचम में चंद्र व मंगल हों तो व्यक्ति उन्मादग्रस्त होता है। अस्त या नीच का तृतीयेश छठे स्थान में हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो तो जातक जहर खाने से उन्मादग्रस्त होता है। क्षीण चंद्र और शनि यदि बारहवें स्थान में हों तो व्यक्ति उन्मादग्रस्त होता है। शनि एवं धनेश दोनों पाप ग्रह से युत हों तो वायु जनित उन्माद होता है। धनेश और शनि यदि सूर्य से युत हों तो सत्तापक्ष के कोप के कारण उन्माद होता है। शनि और धनेश यदि मंगल से युत हों तो पित्तजन्य उन्माद होता है। चंद्र और सूर्य दोनों नौवें या पांचवें भाव में अथवा लग्न में हों, केंद्र में गुरु हो तथा जन्म समय शनि अथवा मंगल की काल होरा हो या जन्म शनिवार को हुआ हो तो व्यक्ति उन्मादग्रस्त होता है। स चंद्र और शनि लग्न में हों और बुध से दृष्ट हों तो उन्माद होता है। उपाय: वस्तिक्रिया, विरेचन, वमन आदि उन्माद के उŸाम उपचार हैं। आचार्य चरक के अनुसार कल्याणघृत उन्माद रोग की राम बाण औषधि है। आचार्य कल्याण की भी यही मान्यता है। मनोरोग: चंद्रमा मनसो जातह चंद्र: चंद्र मन को, वात् संस्थान को तथा मनः स्थित को संचालित करता है। बुध: बुध बुद्धि व मानसिक विचारों को दर्शाता है। प्रथम भाव बुद्धि व, मस्तिष्क को दर्शाता है। अतः इन सबका मानसिक रोग, मानसिक पिछड़ापन, मतिभ्रम आदि के उपचार के समय विचार करना जरूरी है। मनोरोग विशेषज्ञों का विचार है कि हर व्यक्ति कभी न कभी कुछ हद तक इन परिस्थितियों से गुजरता है। कभी हम मूडी होते हैं तो कभी गुस्से, डर या उद्वेग से ग्रस्त हो जाते हैं। वहीं कई बार हममें बदले की भावना पनपती है और हम लोगों को नुकसान पहुंचाने की सोचते हैं। यह एक प्रकार का उन्माद ही है। यदि हम इन सारी दुर्भावनाओं तथा अवस्थाओं पर समय रहते नियंत्रण पा लें तो उन्मादग्रस्त होने से बच सकते हैं। जिन जातकों के चंद्र, बुध, लग्न भाव और लग्नेश पर राहु, केतु, मंगल, शनि आदि का प्रभाव हो, वे लंबे समय तक मानसिक रोग से ग्रस्त रहते हैं। उन्हें मानसिक रोगी की श्रेणी में रखा जाता है। उन्माद होने के कुछ अन्य योग बुध और गुलिका की युति विशेषकर छठे भाव में होना। चंद्र का केतु एवं शनि के साथ स्थित होना। शनि व राहु की युति विशेषकर कन्या राशि में 10 पर होना तथा लग्न कन्या या मीन होना। चंद्र व शनि की युति तथा उन पर मंगल की दृष्टि होना। बृहस्पति और शनि की युति द्वादश भाव में होना। कुछ अन्य ज्योतिषीय विचार मानसिक रूप से पिछड़ापन फलित सूत्र के अनुसार चंद्र मन का कारक है। सूर्य विकास तथा शनि जड़ता का कारक है। कुंडली में चतुर्थ भाव मन का, पंचम बुद्धि का एवं नवम् विकास का द्योतक है। अतः इन भावों पर पाप प्रभाव होने से शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास बाधित होता है और जातक मानसिक पिछड़ेपन का शिकार हो जाता है। कुछ अन्य सूत्र भी यहां प्रस्तुत हैं। लग्न में सूर्य, 12वें में चंद्र एवं त्रिकोण में मंगल हो। केंद्र में चंद्र एवं शनि हों और दोनों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो। केंद्र, चंद्र, शनि गुलिक (मांदि) हों।



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