उदर रोग की ज्योतिषीय समीक्षा
उदर रोग की ज्योतिषीय समीक्षा

उदर रोग की ज्योतिषीय समीक्षा  

अर्चना शुक्ला
व्यूस : 5025 | अप्रैल 2017

ज्योतिष शास्त्र का मौलिक उद्देश्य यह है कि कोई भी वस्तु चाहे वह स्थावर हो या जंगम इस विस्तृत ब्रह्मांड में जिन शक्ति के अनुसार दूसरे पदार्थों पर अपना प्रभाव डालती है वस्तु का स्वरूप ब्रह्मांड के स्वरूप के अंतर्गत ही होता है। आधुनिक युग में उदर रोग एक भयानक रूप ले चुका है, हमारे आस-पास के परिवेश में हमने उदर रोग से लोगों को मरते हुए देखा है व उसकी विशेषता को अनुभव किया है। कई और भी असाध्य रोगों से होने वाली मौतों के अलावा उदर रोग भी एक बड़ा कारण बनता है। पेट संबंधी रोगों में मरीजों की संख्या में आने वाले समय में वृद्धि होती जा रही है।

हमारे शोध का एकमात्र उद्देश्य है मनुष्य का कल्याण व स्वस्थ जीवन एवं उदर रोगों से मनुष्य को मुक्त करना। रोगों से पीड़ित व्यक्ति का परिवार दुःखी रहता है और चिकित्सक के पास जाने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं होता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिपोर्ट के अनुसार पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में 11 प्रतिशत मृत्यु अतिसार के कारण होती है। रोग का निदान व उपचार प्रारंभिक अवस्था में किया जाय तो इस रोग का पूर्ण उपचार संभव है। उदर रोग का सर्वोत्तम उपचार नियंत्रण है।

यदि मनुष्य अपनी जीवनशैली में कुछ परिवर्तन कर ले तो 60 प्रतिशत रोग से मुक्ति पा सकता है और वर्तमान काल में यह ज्ञान सिर्फ हमें ज्योतिष शास्त्र में मिल सकता है। इस संबंध में पूर्व जानकारी प्राप्त कर कोई भी संभावित कष्टों का सामना करने के लिए स्वयं को प्रस्तुत कर सकता है। यथासंभव उनसे बचने का प्रयत्न कर सकता है। ज्योतिष शास्त्र में उदर रोग होने के ग्रह योग एवं ग्रह स्थितियों के सूत्र दे रखे हैं तथा अपने शोध के माध्यम से हमें यह ज्ञात करना है कि ऐसी कौन सी स्थितियां हैं जिससे जातक को उदर रोग की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

यहां जो शोध परिकल्पना निर्धारित की गयी है उसका शीर्षक है उदर रोग की ज्योतिषीय समीक्षा जिसका जन्म कुंडली में विवेचन करना कि कौन से ग्रह योग व परिस्थितियां हैं जिससे जातक को उदर रोग हुआ। ज्योतिष को हम वैज्ञानिक आधार से भी देखते हैं जिसके माध्यम से हम घटनाओं का आकलन करते हैं जिसका प्रभाव हमारे समस्त कार्यों पर पड़ता है जिसे हम जन्म कुंडली के आधार पर विश्लेषण करते हैं कि किस ग्रह स्थिति के कारण हमारा शरीर रोग ग्रस्त हुआ। हमारे रिसर्च प्रोजेक्ट का उद्देश्य है कि हम आने वाली पीढ़ी को उदर रोग से बचा सकंे। इस शोध प्रबंध में हमने हर उम्र तक के व्यक्तियों की जन्म कुंडलियों को आधार मानकर ग्रह, योग, दशा, गोचर एवं प्रश्नकालीन ग्रह स्थिति का विचार करें।


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यदि उसके जीवन में इस रोग की संभावनाएं बन रही हैं तो वह अपनी जीवनशैली में बदलाव कर इस भयानक रोग से कैसे बचाव कर सके। हमारा प्रथम लक्ष्य यह है कि व्यक्ति की जन्मकुंडली के आधार पर वर्षों पहले यह जाना जा सकता है कि उसके किस आयु खंड में घटना घटेगी व उसका अमुक परिणाम क्या निकलेगा। ज्योतिष में किस प्रकार उदर रोग योगों का ज्ञान और काल निर्धारण संभव है।

अतः इसी ज्योतिष के ज्ञान को आधार मानकर इस शोध का वैज्ञानिक आधार पर विवेचन किया जायेगा। यहां प्रारब्ध, संचित एवं क्रियमान कर्म के तीनों भेदों में संचालित कर्म ही रोगोत्पत्ति के मुख्य रूप में स्वीकृत हैं। रोग के लिए विभिन्न ग्रहों का विचार करते हैं। जो ग्रह छठे भाव में हों, आठवें, बारहवें व षष्ठेश हो व षष्ठेश के साथ हो। काल पुरुष की कुंडली में उदर का स्थान पंचम भाव जिसकी राशि सिंह है। सिंह राशि जो पंचम भाव का कारक है उससे प्रभावित अंग उदर है।

उदर रोग के ज्योतिषीय कारण जो प्रमुख रूप से उदर रोग को निर्देशित करने में सहायक होते हैं:

1. सूर्य, मंगल, शनि, राहु-केतु में से तीन ग्रहों का एक स्थान पर युति करना पेट में विकार देता है।

2. नीच चंद्रमा लग्नस्थ होकर मंगल, शनि या राहु से दृष्ट

3. गुरु शत्रु क्षेत्री होकर षष्ठस्थ हो तथा पापी मंगल अष्टम भाव में।

4. मंगल यदि शनि क्षेत्री हो मंगल की राशि में शनि षष्ठ भाव में स्थित हो व चंद्रमा से केंद्र में हो।

5. चंद्रमा का सिंह राशि या षष्ठेश होना।

6. लग्न राहु-केतु के अक्ष मंे।

7. विषम लग्न में षष्ठेश व लग्नेश भी विषम राशि में व दोनों पर शनि की दृष्टि।

8. अष्टम में शनि तथा लग्न में चंद्रमा स्थित हो तो इनमें से कोई भी योग।

9. सप्तम भाव या सातवीं राशि तुला तथा चंद्रमा और

10. लग्न में राहु तथा दशम भाव में सूर्य, चंद्र की युति होने से 19वें वर्ष में जलोदर रोग होता है।

11. चंद्र राशि की युति पंचम में,

12. पंचम भाव: पंचमेश या सिंह राशि पर पाप ग्रहों की दृष्टि युति तथा लग्न की हीन बल होना।

ज्योतिष शास्त्र में उदर रोग पर कोई ज्योतिष वैज्ञानिक पुस्तक नहीं है जिससे सारगर्भित अध्ययन किया जा सके। ज्योतिष शास्त्र के कुछ प्राचीन ग्रंथों जैसे मुहूर्तमार्तंड ग्रंथ हैं जिसमें योग बताये गये हैं परंतु उसका विश्लेषण नहीं किया गया। वैज्ञानिक दृष्टि से इस विषय पर अति स्वल्प कार्य हो चुके हैं किंतु शोधकर्ता की दृष्टि में ज्योतिर्वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अब तक कोई कार्य नहीं किया है। कुछेक हैं भी तो अपूण्र् ा हैं

अतः इस दिशा में एक गंभीर तथा वैज्ञानिक शोध प्रबंध प्रस्तुत करने का प्रयास है। इस प्रकार विवेचनात्मक, व्याख्यात्मक, विश्लेषणात्मक तथा तुलनात्मक संकल्पनात्मक शोध प्रविधियों का प्रयोग कर प्रवृत्ति शोध की पूर्णता प्रदान की जायेगी। डाटा एकत्रित होने पर शोध का कार्य किसी भी सीमा तक पूर्ण हो जाता है।

अब इस डाटा का विश्लेषण निम्न प्रकार से करना हैः

1. पंचम भाव जो उदर भाव है उसके स्वामी तथा भावस्थ ग्रह तथा कारक ग्रह के विवेचन द्वारा,

2. दशा-अंतर्दशा का आंकलन 6,8,12 भाव का आकलन करना होगा।

3. उदर रोग के उस भाव से संबंधित ग्रह का आकलन

4. ज्योतिष विशेषज्ञों से सहायता ली जायेगी। डाटा विश्लेषण के उपरांत ही किसी खास विश्लेषण पर पहुंचा जायेगा।

शोध विधि: शोध का उपयोग, रिसर्च मेथडोलाॅजी यह तरीका है जिससे शोध तरीके का व्यवस्थित तरीके से समाधान करना, तार्किक आधार पर अध्ययन करना, प्रस्तुत शोध में सभी आयामों का अनुपालन किया जायेगा, प्रारूप शोध का डिसक्रिपटिव/एनालायटिकल रिसर्च स्टडीज की श्रेणी में रखा गया है। शोध के इस प्रकार में तात्कालिक व तथ्यात्मक निष्कर्ष सम्मिलित दिये जाते हैं। विभिन्न प्रकार के तात्कालिक तथ्यों एवं आंकड़ों के आधार पर डिसक्रिपटिव रिसर्च दिया जाता है।

इसमें वेरिएबल अनियमित रहते हैं। शोधार्थी जिसे उदर रोग हो चुका है व जिसे होने वाला है उसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। शोध अध्ययन के दौरान केस स्टडी के माध्यम से भी निष्कर्ष प्राप्त कर शोध रिपोर्ट में वर्णित किया। उदर रोगियों का डाटा संकलन करने के लिए हमें सभी रोगियों से व्यक्तिगत संपर्क करना होगा। जो फोन, ईमेल, प्रश्नावली संपर्क व डाॅक्टर के संपर्क के माध्यम से अस्पताल में मौजूदा रोगियों से संपर्क के माध्यम से जन्म, दिनांक, जन्म समय, जन्म स्थान की उदर रोग कब हुआ।

शोध नमूनों का प्रारूप में रोगियों की सारी जानकारी एकत्रित करना व जन्म पत्रियों को एकत्रित कर उनको अध्ययन में सम्मिलित किया। नमूनों के विश्लेषण की योजना में प्रत्येक भाव, ग्रह, राशि, नक्षत्र का अपना अलग-अलग महत्व है। इसलिए हम रोग से संबंधित भाव का अध्ययन करेंगे। उदर रोग के संबंध में निम्नांकित मापदंड तैयार किये गये हैं जिनको विभिन्न कुंडलियों पर प्रायोगिक तौर पर सत्यापितकिया जायेगा। प्राप्त निष्कर्षों को उदर रोग का प्रमुख कारण माना जायेगा।

समाधान का सत्यापन: आंकड़ों के विश्लेषण एवं चर्चा में प्रायोगिक अध्ययन के उपरांत प्राप्त परिणाम, उदर रोग के जो हमें निम्न कुंडलियों के अध्ययन के उपरांत पाप्त हुए। ये कुछ कुंडलियां हैं जिसके माध्यम से हम सर्वेक्षण के बाद उदर रोग को स्पष्ट रूप से बता सकते हैं। सारांश: लगभग 26 कुंडलियों पर हमने अध्ययन में पाया कि जिसमें से प्रधान जन्मांग चक्र के द्वारा उदर रोग की मीमांसा की गयी। इसमें सभी उदर रोग से पीड़ित हैं।


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इन सभी के अध्ययन में हमने पाया जो निम्न हैंः

1. पंचम भाव पाप ग्रहों से कहीं न कहीं पीड़ित है।

2. नीच चंद्रमा लग्नस्थ होकर मंगल, शनि या राहु से दृष्ट

3. गुरु शत्रु क्षेत्री होकर षष्ठस्थ हो तथा पापी मंगल अष्टम भाव में।

4. मंगल यदि शनि क्षेत्री हो मंगल की राशि में शनि षष्ठ भाव में स्थित हो व चंद्रमा से केंद्र में हो।

5. चंद्रमा का सिंह राशि या षष्ठेश होना।

6. लग्न राहु-केतु के अक्ष मंे।

7. विषम लग्न में षष्ठेश व लग्नेश भी विषम राशि में व दोनों पर शनि की दृष्टि।

8. अष्टम में शनि तथा लग्न में चंद्रमा स्थित हो तो इनमें से कोई भी योग।

9. सप्तम भाव या सातवीं राशि तुला तथा चंद्रमा और

10. लग्न में राहु तथा दशम भाव में सूर्य, चंद्र की युति होने से 19वें वर्ष में जलोदर रोग होता है।

11. चंद्र राशि की युति पंचम में,

12. पंचम भाव: पंचमेश या सिंह राशि पर पाप ग्रहों की दृष्टि युति तथा लग्न की हीन बल होना।

ज्योतिष शास्त्र में उदर रोग पर कोई ज्योतिष वैज्ञानिक पुस्तक नहीं है जिससे सारगर्भित अध्ययन किया जा सके। ज्योतिष शास्त्र के कुछ प्राचीन ग्रंथों जैसे मुहूर्तमार्तंड ग्रंथ हैं जिसमें योग बताये गये हैं परंतु उसका विश्लेषण नहीं किया गया। वैज्ञानिक दृष्टि से इस विषय पर अति स्वल्प कार्य हो चुके हैं किंतु शोधकर्ता की दृष्टि में ज्योतिर्वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अब तक कोई कार्य नहीं किया है। कुछेक हैं भी तो अपूण्र् ा हैं

अतः इस दिशा में एक गंभीर तथा वैज्ञानिक शोध प्रबंध प्रस्तुत करने का प्रयास है। इस प्रकार विवेचनात्मक, व्याख्यात्मक, विश्लेषणात्मक तथा तुलनात्मक संकल्पनात्मक शोध प्रविधियों का प्रयोग कर प्रवृत्ति शोध की पूर्णता प्रदान की जायेगी। डाटा एकत्रित होने पर शोध का कार्य किसी भी सीमा तक पूर्ण हो जाता है।

अब इस डाटा का विश्लेषण निम्न प्रकार से करना हैः

1. पंचम भाव जो उदर भाव है उसके स्वामी तथा भावस्थ ग्रह तथा कारक ग्रह के विवेचन द्वारा,

2. दशा-अंतर्दशा का आंकलन 6,8,12 भाव का आकलन करना होगा।

3. उदर रोग के उस भाव से संबंधित ग्रह का आकलन

4. ज्योतिष विशेषज्ञों से सहायता ली जायेगी। डाटा विश्लेषण के उपरांत ही किसी खास विश्लेषण पर पहुंचा जायेगा।

शोध विधि: शोध का उपयोग, रिसर्च मेथडोलाॅजी यह तरीका है जिससे शोध तरीके का व्यवस्थित तरीके से समाधान करना, तार्किक आधार पर अध्ययन करना, प्रस्तुत शोध में सभी आयामों का अनुपालन किया जायेगा, प्रारूप शोध का डिसक्रिपटिव/एनालायटिकल रिसर्च स्टडीज की श्रेणी में रखा गया है। शोध के इस प्रकार में तात्कालिक व तथ्यात्मक निष्कर्ष सम्मिलित दिये जाते हैं। विभिन्न प्रकार के तात्कालिक तथ्यों एवं आंकड़ों के आधार पर डिसक्रिपटिव रिसर्च दिया जाता है।

इसमें वेरिएबल अनियमित रहते हैं। शोधार्थी जिसे उदर रोग हो चुका है व जिसे होने वाला है उसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। शोध अध्ययन के दौरान केस स्टडी के माध्यम से भी निष्कर्ष प्राप्त कर शोध रिपोर्ट में वर्णित किया। उदर रोगियों का डाटा संकलन करने के लिए हमें सभी रोगियों से व्यक्तिगत संपर्क करना होगा। जो फोन, ईमेल, प्रश्नावली संपर्क व डाॅक्टर के संपर्क के माध्यम से अस्पताल में मौजूदा रोगियों से संपर्क के माध्यम से जन्म, दिनांक, जन्म समय, जन्म स्थान की उदर रोग कब हुआ।

शोध नमूनों का प्रारूप में रोगियों की सारी जानकारी एकत्रित करना व जन्म पत्रियों को एकत्रित कर उनको अध्ययन में सम्मिलित किया। नमूनों के विश्लेषण की योजना में प्रत्येक भाव, ग्रह, राशि, नक्षत्र का अपना अलग-अलग महत्व है। इसलिए हम रोग से संबंधित भाव का अध्ययन करेंगे। उदर रोग के संबंध में निम्नांकित मापदंड तैयार किये गये हैं

जिनको विभिन्न कुंडलियों पर प्रायोगिक तौर पर सत्यापितकिया जायेगा। प्राप्त निष्कर्षों को उदर रोग का प्रमुख कारण माना जायेगा। समाधान का सत्यापन: आंकड़ों के विश्लेषण एवं चर्चा में प्रायोगिक अध्ययन के उपरांत प्राप्त परिणाम, उदर रोग के जो हमें निम्न कुंडलियों के अध्ययन के उपरांत पाप्त हुए। ये कुछ कुंडलियां हैं जिसके माध्यम से हम सर्वेक्षण के बाद उदर रोग को स्पष्ट रूप से बता सकते हैं। सारांश: लगभग 26 कुंडलियों पर हमने अध्ययन में पाया कि जिसमें से प्रधान जन्मांग चक्र के द्वारा उदर रोग की मीमांसा की गयी। इसमें सभी उदर रोग से पीड़ित हैं।

इन सभी के अध्ययन में हमने पाया जो निम्न हैंः

1. पंचम भाव पाप ग्रहों से कहीं न कहीं पीड़ित है।

2. भौम के अष्टमस्थ होने से भी उदर रोग होता है।

3. चंद्रमा पाप ग्रहों से पीड़ित होने पर उदर रोग की संभावना बनी।

प्रस्तुत कुंडलियों में सूर्य व चंद्रमा पीड़ित है व कहीं न कहीं राहु-केतु शनि व मंगल के प्रभाव में है। सूर्य काल पुरुष की कुंडली में उदर का कारक है, जिससे कहीं न कहीं उदर प्रभावित होगा और वो उस दशा व अंतर्दशा में उदर संबंधित विकार देगा। ज्योतिष शास्त्र में किसी भी फल या स्थिति के परिपक्व काल का ज्ञान केवल दशाओं के माध्यम से किया जाता है।

प्रमुख दशाओं में भी विंशोत्तरी दशा प्रणाली महर्षि पराशर की सर्वोत्तम कही गयी है। यह सर्वत्र प्रमाणित एवं सार्वदेशिक होने के साथ-साथ युक्ति युक्त है जिस प्रकार उदर में विकारादि के ग्रह योग प्राप्त होते हैं वे तद् 2 ग्रहों के दशान्तर्दशाओं में उत्पन्न होते हैं जैसा कि वृहत्त्पाराशर होराशास्त्र एवं फलदीपिका, जातक पारिजात जैसे ग्रंथों में पाये जाते हैं।

यदि उदर कारक ग्रह की दशा में निर्बल लग्नेशादि की दशा आयी या फिर षष्ठेश या द्वादशेश की दशान्तर्दशा प्राप्त हुयी तो निश्चित रूप से उस काल में उदर रोग होता है। इसमें जब मारकेश की दशा हो, लग्नेश बलहीन हो तथा अल्पायु योग हो या हानि की अंतर्दशा हो तो उदर रोग से मृत्यु भी संभव होता है। नोट: ये स्थिति जन्मांग चक्र पर आधारित है। प्राप्त कुंडलियों के आधार पर जो हमें निष्कर्ष प्राप्त हुआ वे निम्नलिखित हैं, उपरोक्त परिणाम को निम्न चार्ट से समझ सकते हैं:

पैरामीटरर्स के आधार पर प्राप्त रेखाचित्र संख्या उदर रोग ग्रहों के आधार पर प्राप्त कुंडलियों के परिणाम को ग्राफ के आधार पर दर्शाया गया है, जो निम्नलिखित है। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि 26 उदर रोग से ग्रस्त व्यक्तियों की कुंडली में मापदण्ड संख्या 12, 6, 9, 11 को सर्वाधिक कुंडलियों में पाई गई। मापदण्ड संख्या 5, 4 लगभग सामान्य पाई गई। मापदण्ड संख्या 1 सबसे कम पायी गयी।


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