हमारी पाचन क्रिया भोजन को शर्करा (ग्लूकोज) और शरीर के स्वास्थ्य के लिए विभिन्न आवश्यक तत्वों में परिणत करता है। ‘पैंक्रियाज’ ग्रंथि द्वारा स्रावित ‘इन्सुलिन नामक हार्माेन इस शर्करा को शरीर की कोशिकाओं तक रक्त संचार द्वारा पहुंचा कर उन्हें शक्ति प्रदान करता है तथा रक्त में शर्करा की मात्रा नियंत्रित रखता है। खाली पेट शर्करा का स्तर 60 से 100 मिलीग्राम प्रति 100 सी. सी. तथा भोजन के दो घंटे बाद इसका स्तर 100 से 140 मिलीग्राम के बीच रहना चाहिए। रक्त में ‘इन्सुलिन’ की कमी रहने पर शर्करा कोशिकाओं तक नहीं पहुंचती और रक्त में ही एकत्रित होती रहती है। रक्त में शर्करा की बढ़ी मात्रा किडनी द्वारा पूरी तरह अवशोषित नहीं होने पर वह मूत्र के साथ निष्कासित होने लगती है और व्यक्ति शक्तिहीनता एवं आलस्य अनुभव करता है।
इस स्थिति को ‘मधुमेह’ या ‘डायबिटीज’ रोग कहते हैं। मधुमेह रोग लंबे समय तक रहने पर अंदर ही अंदर हृदय, किडनी और आंखों पर दुष्प्रभाव डालता है। कुछ गर्भवती महिलाओं को इस रोग की शिकायत हो जाती है जो प्रसव तक चलती है। उचित खान-पान और उपचार से इस रोग को नियंत्रित रखा जाता है। ‘मधुमेह’ वंशानुगत रोग है। माता या पिता को मधुमेह रोग लंबे समय तक रहने पर उनकी संतान को भी यह रोग होने की संभावना रहती है। एक दशक पूर्व तक यह रोग 45-50 वर्ष के व्यक्तियों को होता था, परंतु आजकल के अनियमित रहन-सहन और खान-पान के कारण छोटी आयु के युवाओं और बच्चों में भी इस रोग की वृद्धि हो रही है।
रक्त शर्करा अधिक रहने पर व्यक्ति को प्रतिदिन ‘इन्सुलिन’ का इन्जेक्शन लेना पड़ता है। इस रोग का अभी तक पूर्ण उपचार संभव नहीं है, परंतु खान-पान में सुधार, सब्जी व सलाद का अधिक सेवन, चावल, आलू व चीनी का परहेज, नियमित व्यायाम तथा उचित दवा लेते रहने पर मधुमेह को नियंत्रण में रखकर उसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। इस रोग के प्रति सावधान रहने के लिए प्रतिवर्ष 14 नवंबर को ‘वल्र्ड डायबिटीज डे’ के रूप में मनाया जाता है।
मधुमेह के प्रत्यक्ष लक्षण इस प्रकार हैं:
1. बार-बार प्यास लगना और पेशाब आना।
2. बार-बार खाते रहने पर भी वजन घटना।
3. शरीर में थकान, सुस्ती व दर्द रहना।
4. फोड़े, फुंसी व जख्म जल्दी ठीक न होना।
5. त्वचा का शुष्क रहना।
6. हाथ पैर सुन्न रहना।
7. दृष्टिहीनता के कारण धुंधला दिखाई देना। इनमें से कुछ एक लक्षण होने पर अपना मेडिकल चेकअप अवश्य करवाना चाहिए।
ज्योतिषीय विवेचन: व्यक्ति के स्वास्थ्य का आकलन लग्न (शरीर), षष्ठ भाव (रोग) तथा अष्टम भाव (आयु), उनके स्वामियों के बलाबल और उन पर शुभ-अशुभ ग्रहों के प्रभाव अनुसार किया जाता है।
यदि कुंडली में लग्न, लग्नेश तथा अष्टम भाव व अष्टमेश बलवान हो और षष्ठ भाव व षष्ठेश निर्बल या पीड़ित हो तो व्यक्ति निरोगी रहता है। विपरीत स्थिति में - लग्न, लग्नेश, अष्टम भाव व अष्टमेश निर्बल तथा पापी ग्रह द्वारा पीड़ित होने तथा षष्ठ भाव व षष्ठेश के बलवान होने पर जातक किसी न किसी रोग से ग्रसित रहता है। कन्या राशि (भचक्र का षष्ठ भाव) तथा स्वामी बुध पाप ग्रहों से पीड़ित होने अथवा उसकी त्रिकेशों से युति या दृष्टि संबंध होने पर शरीर रोगी रहता है।
इस प्रकार सर्वप्रथम किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य का आकलन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र ‘पैंक्रियाज’ सहित शरीर की सभी ग्रंथियों तथा प्रजनन अंगों पर शुक्र का आधिपत्य मानता है। शुक्र ग्रह के निर्बल (नीचस्थ, अस्त, शत्रु राशि में अथवा पाप प्रभाव में) होने पर व्यक्ति योनि, ग्रंथियों तथा मूत्र प्रणाली के रोग से ग्रस्त होता है। षष्ठ भाव (रोग) अथवा रोगेश का शुक्र से संबंध होने पर मधुमेह की संभावना बढ़ जाती है। बृहस्पति ग्रह शरीर में लिवर, चर्बी, मोटापा व मीठे तत्व से संबंध रखता है।
मधुमेह रोग रक्त में शर्करा की अधिक मात्रा के कारण होता है। अतः मधुमेह का बृहस्पति ग्रह से सीधा संबंध है। षष्ठ भाव व षष्ठेश का बृहस्पति ग्रह से संबंध भी मधुमेह का कारण होता है। सूर्य अमाशय और जठराग्नि का कारक है, जो पंचम भाव के कार्यक्षेत्र में आता है। मधुमेह के रोगी की कुंडली में पंचम भाव ग्रसित पाया जाता है। चंद्रमा शरीर में जल तत्व और रक्त प्रवाह का कारक है।
शनि का संबंध दीर्घकालीन रोग देता है। इस प्रकार शुक्र, बृहस्पति, सूर्य, चंद्र पर पापी ग्रहों (शनि, मंगल, राहु, केतु) अथवा त्रिक भावों (6, 8, 12) के स्वामियों का प्रभाव अथवा इनकी त्रिक भावों में स्थिति होने पर व्यक्ति को मधुमेह रोग होता है।
इस रोग से संबंधी ग्रह योग इस प्रकार हैं:ग्रह योग
1. लग्नेश तथा षष्ठेश शुक्र या चंद्रमा से युक्त होकर लग्न या षष्ठ भाव में हों।
2. लग्न में पीड़ित शुक्र ग्रह स्थित हो।
3. बृहस्पति, शुक्र, लग्नेश, पंचम भाव और पंचमेश राहु/केतु के पाप प्रभाव में हों।
4. बृहस्पति की द्वादश भाव में स्थिति तथा शुक्र की छठे/आठवें भाव में स्थिति। ऐसे बृहस्पति की शुक्र पर दृष्टि भी मधुमेह का कारण बनती है।
5. बृहस्पति का नीच राशि या 6, 8, 12 भाव में स्थित होकर अशुभ ग्रहों से दृष्ट होना।
6. वक्री बृहस्पति लग्न में तथा शुक्र सप्तम भाव में पाप ग्रहों से पीड़ित होकर बृहस्पति पर दृष्टि डाले और लग्नेश षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो मधुमेह रोग होता है।
7. बृहस्पति व शनि का संबंध भी पैंक्रियाज पर अशुभ प्रभाव डालता है।
8. शुक्र व चंद्रमा (जलीय ग्रह), जलीय राशि (कर्क, वृश्चिक तथा मीन) में पापी ग्रहों से पीड़ित होने पर मधुमेह रोग होता है।
9. पापी ग्रहों का तुला या वृश्चिक राशि में होना तथा बृहस्पति का नीचस्थ या किसी पाप ग्रह की राशि में होना।
10. बृहस्पति तुला राशि में तथा शनि कर्क राशि में स्थित होने से मधुमेह रोग होता है।
11. तुला राशि तथा अधिपति शुक्र का पापी ग्रहों से आक्रांत होना। मधुमेह जनित अन्य रोग मधुमेह द्वारा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने से निम्न रोगों की संभावना बढ़ जाती है:
1. पीड़ित शुक्र के साथ नेत्र ज्योति के कारक सूर्य व चंद्रमा का संबंध होने पर नेत्र ज्योति क्षति (रेटिनोपैथी) की संभावना होती है।
2. शुक्र के साथ सूर्य और बुध ग्रह के ग्रसित होने पर स्नायु रोग (न्यूरोपैथी) हो सकता है।
3. सूर्य, बृहस्पति तथा चतुर्थ भाव का संबंध होने पर मधुमेह के कारण हृदय रोग की संभावना रहती है।
4. सप्तम भाव, तुला राशि, शुक्र व चंद्रमा पीड़ित होने पर मधुमेह के कारण किडनी पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
5. घाव ठीक न होना अथवा गैंगरीन की स्थिति, पीड़ित शुक्र के साथ चंद्रमा, बुध और मंगल के संबंध से होती है।
इस प्रकार मधुमेह अंदर ही अंदर शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर दुष्प्रभाव डालकर उन्हें रोगग्रस्त करता है। यद्यपि अभी तक मधुमेह का पूर्ण उपचार उपलब्ध नहीं है परंतु इस रोग के हो जाने पर सही भोजन, नियमित व्यायाम और उचित दवा के सेवन से नियंत्रण में रखकर स्वस्थ जीवन व्यतीत किया जा सकता है।
इस संदर्भ में लेखक के संज्ञान में आई कुछ कुंडलियां प्रस्तुत हैं:
1. भारत रत्न डाॅ. एम. एस. सुब्बालक्ष्मी, प्रसिद्ध कर्नाटक संगीत गायिका दिनांक: 16-9-1916, समय: 9ः25 सुबह स्थान: मदुरइ कुंडली में षष्ठेश बृहस्पति और लग्नेश व अष्टमेश शुक्र, जिनका पैंक्रियाज पर नियंत्रण रहता है क्रमशः मंगल, शनि व केतु से पीड़ित हैं। शुक्र जलीय राशि (कर्क) में है। इनको 1948 (राहु-शनि) में मधुमेह का पता चला। बृहस्पति की लग्न पर तथा नवमांश में भी लग्न पर दृष्टि के कारण रोग नियंत्रण में रहा। उनका यशस्वी जीवन बिताने के बाद 88 वर्ष की आयु में 11 दिसंबर, 2004 को स्वर्गवास हुआ।
2. पुरुष: दिनांक: 14-9-1938, समय: 21ः36 स्थान: झांसी (उ.प्र.) जातक की माता को मधुमेह था, अतः उसने अपने खान-पान का पूरा ध्यान रखा। पंचमेश शुक्र तुला राशि में राहु से पीड़ित है। राहु की नवम भाव स्थित बृहस्पति पर तथा एकादश भाव स्थित चंद्रमा पर दृष्टि है। अष्टमेश शनि जलीय राशि (मीन) में है और उस पर षष्ठेश मंगल की दृष्टि है। मई, 2002 में (शनि-शुक्र के समय) 63 वर्ष की आयु में वार्षिक मेडिकल चेकअप के समय मधुमेह का पता चला। संतुलित भोजन, प्राणायाम और दवा द्वारा रोग नियंत्रण में चल रहा है। बृहस्पति की लग्न, सूर्य व शुक्र पर शुभ दृष्टि है।
लग्नेश शनि शत्रु केतु के साथ तृतीय भाव में जलीय राशि में है और उसकी द्वादश भाव स्थित बृहस्पति पर दृष्टि है। षष्ठ भाव पर दूषित बृहस्पति की दृष्टि है। पंचमेश शुक्र अष्टम भाव में है। उसपर राहु-मंगल का पापकत्र्तरी प्रभाव है। जातक को अप्रैल, 2008 में अधिक प्यास लगने, बार-बार पेशाब आने और सुस्त रहने पर चेकअप कराने पर मधुमेह का पता चला। वर्तमान में निदान चल रहा है।