मेष एवं वृश्चिक लग्न इस लग्न का स्वामी मंगल ग्रह है। भूमि एवं अग्नि तत्व लिए हुए नर भेड़ का स्वरूप मेढ़ा होता है। इस लग्न के जातक की प्रवृत्ति जिद्दी स्वभाव समय के अनुरूप निर्दयी व क्रूर तथा कभी-कभी बुद्धिहीन भी हो जाता है। अर्थात वह अपनी उग्र परिथितियों में सामाजिक अवधारणाओं के विपरीत भी कार्य कर बैठता है। इस लग्न की प्रवृत्ति पित्त की प्रधानता को लिए हुए कफ मिश्रित होती है और इस लग्न के व्यक्तियों में मस्तिष्क या नाक से रक्त का श्राव (नकसीर) कोष्ठबद्धता (कब्ज) अर्श (बवासीर) स्मरणशक्ति की कमी के साथ-साथ पाण्डु रोगों की प्रबलता देखने को मिलती है। इस लग्न के व्यक्तियों को लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है।
जबकि इस लग्न के व्यक्तियों को काले, नीले, एवं हरे रंग के वस्त्रों का उपयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि बुध ग्रह इसका विपरीत ग्रह है। इस लग्न के जातकों को अपने खानपान में मद्य एवं मांस के अतिरिक्त गरिष्ठ भोजन, काॅफी आदि का सेवन न करें। इस लग्न के व्यक्तियों को नारंगी, पीले, लाल वस्त्रों के साथ-साथ हरी साग - सब्जियों का ज्यादा सेवन करना हितकारी है। इस लग्न के व्यक्तियों को चाहिए कि वे वर्ष में दो-चार बार भ्रमण भी करें। इसी लग्न का फल वृश्चिक लग्न में भी देखने को प्रायः मिलता है। चूंकि दोनों ही लग्नों का स्वामी मंगल है।
वृष एवं तुला लग्न वृष एवं तुला लग्न का स्वामी शुक्र स्त्रीकारक ग्रह शर्मीले स्वभाव का शांत, परंतु कुटिल होता है। इनके शरीर में वात की प्रधानता के साथ-साथ कफ प्रवृत्ति का मिश्रण होता है। इस लग्न के जातकों में पीनस रोग के साथ मूत्र रोगों की भी प्रबलता होती है। इन लग्नों के व्यक्तियों को सुनहरा (गोल्ड) नीले, हल्के आसमानी, हरे रंग के वस्त्रों का पहनना लाभदायक है।
जबकि लाल एवं नारंगी, काले, पीले व गुलाबी वस्त्रों का प्रयोग अवरोधात्मक होता है। इन लग्नों के व्यक्तियों को सुगंधों के प्रयोग जैसे परफ्यूम आदि लाभकारी है। ऐसे लग्न के व्यक्तियों को अपने शरीर को पुष्ट करने के लिए रस रसायनों का प्रयोग करना चाहिए। मिथुन एवं कन्या लग्न इन लग्नों का स्वामी बुध है। इसका रंग हरा है।
जो कि प्रखर वक्ता, वाचाल एवं वाकपटु होता है। शरीर में रोगों के अनुसार वायु की अधिकता लिए हुए, कफ का मिश्रण, ऐसे लोगों में उदर रोगों की प्रधानता, मधुमेह की बीमारी के साथ-साथ हृदय रोगों का भी डर बना रहता है। लग्न के अनुरूप हल्के काले, नीले, हरे, भूरे रंग के वस्त्रों के प्रयोग से जातकों को लाभ मिलता है। प्रातःकाल में हरी घास पर चलना, ध्यान, योगासन, साबूत मूंग, लौकी, कच्चा पपीता, परवल, टिण्डा आदि सब्जियों के सेवन से शरीर स्वस्थ एवं मन तनाव मुक्त रहता है।
धनु एवं मीन लग्न धनु एवं मीन राशि का स्वामी गुरु है। मोटापा लिए हुए आलस्य से परिपूर्ण, सौम्य विचारों का स्वामी गुर्दे के पथरी रोग, हारमोन्स का असंतुलन, मेरूदंड (स्पोनलाइटिस) के साथ-साथ मधुमेह रोग की संभावना के साथ-साथ उच्च रक्तचाप का भी खतरा मंडराता रहता है। इन लग्नों के व्यक्तियों को सफेद, पीले, हल्के गुलाबी वस्त्रों के पहनने से लाभ, गहरे काले, नीले, हरे वस्त्रों के धारण करने से मानसिक अवसाद का भय बना रहता है तथा लाल रंग के वस्त्रों का पहनना शुभ नहीं है।
इस लग्न के व्यक्तियों को हल्के सुपाच्य भोजन, दूध, दही आदि का नियमित सेवन लाभदायी है। सिंह लग्न इस लग्न का स्वामी सूर्य पित्त प्रवृत्ति युक्त, शांत स्वभाव, विपरीत परिस्थितियों में अति हिंसक, पेट के रोगों को लिए हुए, नेत्र विकारी, गरिष्ट भोजन का स्वादु तथा भ्रमणशील होता है। इस लग्न के जातक को गहरे काले, नीले, पीले वस्त्रों के साथ-साथ मद्य मांस का प्रयोग सर्वथा वर्जित है तथा वर्ष में यदा-कदा वन एवं पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण शरीर के लिए अनुकूल है।
इस ग्रह के जातक के लिए लाल एवं नारंगी वस्त्र धारण करना लाभदायी है। मकर एवं कुंभ लग्न मकर एवं कुंभ का स्वामी कृषकाय नील वर्ण का सूर्य पुत्र शनि पेट का रोगी, वात एवं कफ से पीड़ित, सांस रोगी, ऋतुओं के परिवर्तन काल में पीड़ाकारक, जिद्दी स्वभाव का होता है। ऐसे लग्न के व्यक्तियों को नारंगी व पर्पल शेडयुक्त नीले हरे रंग के वस्त्रों को पहनना चाहिए। वे धुम्रपान एवं मदिरा आदि के सेवन से परहेज रखें। कर्क लग्न इस लग्न का स्वामी चंद्रमा है।
वायु एवं शीत की प्रधानता लिए हुए कफ रोगों की उत्पत्ति करता है। सौरमंडल में शीघ्रताशीघ्र परिवर्तन करने वाला एकमात्र ग्रह चंद्रमा उस व्यक्ति के स्वभाव को चंचल बनाकर रखता है। ऐसे व्यक्ति पल-पल में अपना निर्णय बदलते रहते हैं।
इस लग्न के व्यक्तियों को हल्के सफेद, क्रीम, नारंगी, हल्के लाल रंग के वस्त्रों का प्रयोग करना लाभकारी है तथा इस लग्न के व्यक्तियों को काले एवं पीले वस्त्रों के धारण से परहेज करना चाहिए। इस लग्न के जातकों को रात्रि में दूध, पनीर, चावल आदि का सेवन वर्जित है। इस लग्न के व्यक्तियों के रोगों का संधान करें तो वह प्रायः मलबद्धता, गलगंड (घेंघा रोग) के अतिरिक्त टी.बी. जैसे जधन्य रोगों के होने की संभावना रहती है। चर्म रोगों में संधिकाल, प्रजनन, त्वचा या त्वचा का फटना इत्यादि रोगों से पीड़ा रहती है।