सांचोली मां का व्रत

सांचोली मां का व्रत  

व्यूस : 7188 | मार्च 2010
सांचोली मां का व्रत (16 से 24 मार्च) पं. ब्रजकिशोर भारद्वाज 'ब्रजवासी' सांचोली मां का व्रत विशेषकर चैत्र या आश्विन मास की नवरात्रियों में करने का विधान है। आषाढ़ व माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्रि भी इस व्रत के लिए उत्तम है। सांचोली देवी का स्वरूप गोलोक बिहारी भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत दिव्य लीला का महाप्रसाद है। यह स्वरूप सच्ची भगवती मां के रूप में जिला मथुरा के नंदगांव से 8 किमी. दूर सांचोली गांव में स्थित है। जो जन सच्ची श्रद्धा व भक्ति के साथ इस दिव्य धाम की यात्रा कर मां सांचोली के श्रीचरणों में विनयानवत हो किसी भी कामना पूर्ति के लिए संकल्प करता है और एक वर्ष तक अनवरत मां सांचोली की पूजा-आराधना करता है, उसका संकल्प पूर्ण हो जाता है। मां सांचोली की कृपा से संतान की अभिलाषा वालों को संतान की, निर्धन को धन की, विद्यार्थियों को विद्या की, क्षत्रियों को बल की तथा ब्राह्मणों को विद्या व ज्ञान की प्राप्ति होती है। विशेषकर यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के दर्शनों का लाभ कराने वाला है। श्रीकृष्ण के दर्शन-पूजन से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और उसे चारों पुरुषार्थों तथा सभी सुखों की प्राप्ति होती है। यह पूर्णता का सुअवसर जीवन में तभी प्राप्त हो सकता है, जब व्रती स्त्री या पुरुष, बालक या वृद्ध मां सांचोली की कृपा प्राप्त कर लेता है। बस इस व्रत में व्रती को इतना करना है कि मां सांचोली को दर्शनोपरांत संकल्प के साथ अपने निवास स्थान में स्थापित कर ले और नित्य नैमित्तिक कर्मों को पूर्ण करते हुए मां का षोडशोपचार या पंचोपचार व्रत प्रारंभ कर दे। एक वर्ष तक लगातार इस व्रत का नियमित रूप से पालन करने से व्रती को दैन्यताओं, अपूर्णताओं, विपदाओं आदि से मुक्ति मिलती है और वांछित फल की प्राप्ति होती है। सांचोली मां की आराधना से उसे श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और उसका जीवन धन्य हो जाता है। इस व्रत की एक बड़ी ही सुंदर कथा है, जो इस प्रकार है। ब्रजमंडल, जहां लठामार होली होती है, भगवान श्रीकृष्ण की लीला तथा क्रीड़ास्थली और नंदबाबा की शरणस्थली के नाम से प्रसिद्ध है। उसी ब्रजमंडल में सुंदर-सुंदर वृक्षों के मध्य एक सुंदर और मनोरम गांव है, जिसे नंदगांव कहते हैं। द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण देवकी के गर्भ से अवतरित हुए, तो संपूर्ण ब्रजवासियों को अपनी मनोरम व अद्भुत आश्चर्यमयी लीलाओं का अवलोकन कराते हुए नंदगांव की सीमा तक विस्तीर्ण अंबिका वन में विचरण किया करते थे, गायों को चराया करते थे। इसी वन में सुस्वादु मधुरातिमधुर जल से पूर्ण एक विशाल तालाब था। इस तालाब के किनारों पर आम, कदंब आदि विभिन्न प्रकार के फलदायी व दिव्यसुगन्धि से परिपूर्ण फलों वाले वृक्ष मन को मोहित कर लेते थे। अंबिका वन से विभिन्न प्रकार के पक्षी, जैसे- मयूर, कोयल, पपीहा आदि भी सुंदर-सुंदर बोलियों के द्वारा जीवमात्र के चित्त को आकर्षित कर लेते थे। कहने का आशय यह है कि तालाब तथा अंबिका वन दोनों ही पक्षियों व पशुओं से परिपूर्ण तथा मनोहारी दृश्यों से युक्त थे। उस वन से प्राणी मात्र को आनंद प्रदान करने वाली मंद, सुगंध एवं शीतल पवन का संचार अनवरत होता रहता था। लीला बिहारी भगवान श्रीकृष्ण नित्यप्रति अंबिका वन में गायों को चराकर तालाब पर पानी पिलाने लाते थे। जन-जन के अनुरागी, सभी की आत्मा यशोदानंदन भगवान श्रीकृष्णा के दर्शन करने को नंदगांव से कृष्णासखी नामक एक गोपी भी नित्य प्रति आया करती थी। वह यह नियम कभी भी भंग नहीं करती थी। एक दिन कृष्णासखी के मां-बाप ने उससे पूछा कि बेटी! तुम रोजाना कहां जाती हो? तो उसने उत्तर दिया की मैं सभी का कल्याण करने वाली, अमृतमयी वर्षा करने वाली, ममता की देवी मां देवी के दर्शन को जाती हूं। माता-पिता को कृष्णासखी के उत्तर से संतुष्टि नहीं हुई, मन में संदेह उत्पन्न हो गया और विचार करने लगे कि हमारी यह बेटी हमसे कुछ छिपा रही है। एक दिन जब वह श्रीकृष्ण के दर्शन को चली तो मां-बाप भी उसका पीछा करते हुए चले। सखी मां-बाप को पीछे आते देख तो घबराई और सोचने लगी कि अब क्या होगा? मैंने मां-बाप से झूठ तो बोल दिया, अब श्रीकृष्ण ही मेरे सहायक हैं, गोविंद ही मेरी रक्षा कर सकते हैं। वह जल्दी-जल्दी डग बढ़ाते हुए श्रीकृष्ण के दर्शन को आई और हृदय में मनोहारी झांकी को स्थित कर श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगी, उनका वंदन करने लगी। सखी कहने लगी- हे दयालु प्रभो ! आप वर देने वाले ब्रह्मादि देवताओं को भी वर देने में समर्थ हैं। आप निर्गुण है, निराकार हैं। आपकी लीला बड़ी ही अनोखी व आनंदित करने वाली है। आपके उत्तम चरण इस संसार में सकाम पुरुषों को सभी पुरुषार्थों की प्राप्ति कराने वाले हैं। आप भक्तवत्सल, कृपा व दया के सागर तथा करुणा निधान हैं। मेरी रक्षा कीजिए। मेरे असत्य भाषण रूपी अपराध को क्षमाकर मुझे इस संकट से उबारिए। यह प्रार्थना करती हुई सखी के नेत्रों से झर-झर प्रेमाश्रु बहने लगे, लंबी-लंबी सांसें आने लगीं। तभी सभी जन के कमल रूपी हृदय को नवजीवन, आनंद व शीतलता प्रदान करने वाले अद्भुत मनोहारी रूप लावण्य से युक्त, करोड़ों कामदेव की छवि को भी धूल-धूसरित करने वाले, करोड़ों सूर्य की प्रभा से भी प्रभावान ब्रजमंडल के रसिया मुरली मनोहर भगवान श्रीकृष्ण मंद-मंद मुस्कराते हुए से मधुर, प्रिय व धैर्य प्रदान करने वाली वाणी बोले- हे गोपी! घबराती क्यों है? तेरे मां-बाप के सामने तुझे झूठा नहीं बनने दूंगा। ऐसी अमृतमयी वाणी कहकर भगवान स्वयं देवी मां का रूप धारण कर बैठ गए और वह सखी भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करती हुई शिला में परिवर्तित हो गई। इस तरह भगवान ने अपने भक्त की सत्यता उजागर कर दी। तभी से इस जगह का नाम सत्य के आधार पर सांचोली पड़ गया तथा इस मां का नाम भगवान श्रीकृष्ण के चंद्रवंश से अवतार धारण करने के कारण चंद्रावलि पड़ गया। आज इस सांचोली गांव में मां सांचोली का दरबार है, जिनके दायें और बायें भाग में मां ज्वाला एवं लांगुर बलवीर विराजते हैं। मां के दर्शनमात्र से ही संपूर्ण मनोरथ सफल हो जाते हैं तथा रोग, शोक, भय आदि पास नहीं आते।



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